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E BOOK-CORONA UNCOS
Corona Uncos is a collection of stories that are very heart warming or terribly heart wrenching. While some stories might shatter your faith in humanity, some of them will not fail to bring a smile on your face.
This book is completely dedicated to the known and unknown Corona Warriors. 150 such stories have been written and compiled by Tanisha Agrawal.
AUTHOR
Tanisha Agrawal
वो एक फोर्जर है। मास्टर फोर्जर। देश-विदेश का ऐसा कोई दस्तावेज या पासपोर्ट नहीं, जिसकी नकल अब्बास नहीं कर सकता।
अब्बास के क्लाईंट भी छोटे-मोटे नहीं हैं। देश के नामी-गिरामी अंडरवर्ल्ड डॉन, चीटर, कार्पोरेट लीडर्स, क्रिमिनल्स, दबंग, बाहुबली, भ्रष्ट नेता-अफसर... हर वो शख्श, जिसे कानून की निगाहों से, कानून के लंबे हाथों से, बच कर इंसानों के जंगल में गुम हो जाना है।
अब्बास का काम बखूबी चल रहा है। बिना किसी हंगामे और शोर-शराबे के चल रहे काम में एक दिन ऐसी अड़चन आई कि अब्बास की जिंदगी ही खतरे में पड़ गई। जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में अब्बास को वही सब करना पड़ा, जो उसके क्लाईंट्स करते आए हैं।
अब्बास का किरदार मुंबई अंडरवर्ल्ड में मौजूद रहा है, जिसे हूबहू पेश किया है लेकिन कथानक को रोचक बनाने के लिए कुछ लेखकीय छूट ली हैं।
प्रियदर्शिनी देश की प्रधानमंत्री, जिनके लिए भारत की संप्रभुता सबसे ऊपर है। अमरीका ने खतरनाक सीआईए एजंट रॉबर्ट को प्रियदर्शिनी वध का जिम्मा सौंप रखा है। रॉबर्ट हमले की योजनाएं बनाता है, हर हमले का उसे रेड बैरेट से मुंहतोड़ जवाब मिलता है।
सेना के विभाग टेक्टिकल एक्शन ग्रुप (टेग) के बैनर तले काम करने वाले अज्ञात ग्रुप का कोड नेम रेड बैरेट है।
रेड बैरेट के पास सिर्फ एक काम है - हर हाल में प्रधानमंत्री की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाना, दुश्मनों के एक्टिव होते ही दबोच कर सूचनाएं हासिल करना और मार गिराना।
रेड बैरेट के लिए सीमाओं का बंधन नहीं है। इन्हें सारी दुनिया में काम करने के लिए मुक्त रखा गया।
रेड बैरेट उपन्यास पूरे घटनाक्रम का रोमांचक और लोमहर्षक वर्णन पेश करता है। भारतीय सैन्य खुफिया इकाई की जाबांजी के तमाम किस्सों में से कुछ रेड बैरेट में पेश करता है।
मुंबई के डांस बारों पर एक किताब लिखने चला तो ‘बांबे बार – चिटके तो फटके’ तैयार हो गई। उसके बाद काम किया, तो ‘बारबंदी – बरबाद बारों की बारात’ भी तैयार हो गई। उसके बावजूद इतना मसाला बचा रह गया कि एक और किताब तैयार हो जाए, लिहाजा बारबंदगी ने आकार ले लिया।
मुंबई के डांस बार पूरी दुनिया के कैनवस पर सतरंगी और बदरंगी सपनों का संसार हर रोज रचता है। इसमें जो झिलमिलाते सितारे हैं, वह पीछे से दर्द के तारों से बंधा है।
महाराष्ट्र सरकार भले ही कहे कि राज्य में बारबंदी है, सच तो यह है कि हर जगह ‘बारबंदगी’ जारी है। रिश्वत और भ्रष्टाचार के जरिए इनकी रंगीनियां सारी रात गुलजार रहती हैं।
बारबंदी किताब में जहां बारों पर ताला जड़ने और उसके संघर्ष की दास्तान ऊभर कर सामने आई, वहीं बारबंदगी में डांस बारों के ऐसे विषयों पर चर्चा की है, जो रहस्य की श्रेणी में आते हैं।
पुस्तक में भोजपुरी फिल्मोग्राफी और इंडेक्स है, जो पहली फिल्म से 90 के दशक के अंतक की तमाम जानकारी समेटे है। ये काम जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। पत्र-पत्रिकाओं में इनकी सामग्री नहीं मिलती थी, ना कहीं रिकॉर्ड उपलब्ध थे। सरकारी, गैर-सरकारी और निजी संस्थाओं में भी नहीं थे। लेखक ने दर्जनों जगहों से सारे विवरण जुटा कर बरसों की गोर तपस्या से यह किताब तैयार की है। फिल्म-उद्योग पत्रिका “ट्रेड गाईड‘’ का भी गहन सहयोग मिला। पुस्तक के दोनों हिस्से यानी “इंडेक्स” और “फिल्मोग्राफी” संकलित हुए हैं।
भोजपुरी फिल्मों के साथ दूसरी बोलियों मगही, मैथिली, अवधी, ब्रजभाषा, बुंदेली, मालवी, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, कुमाऊनी, राजस्थानी तथा उनसे निकली नेपाली भाषा की पहली फिल्म से सन 1999 तक बनी फिल्मों का इंडेक्स भी इस पुस्तक में शामिल है।
यह शोध कार्य शिक्षा संस्थानों तथा शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
इस पुस्तक के लेखक डॉ. राजेंद्र संजय अपने दिल की बात बताते हुए कहते हैः- “कवि की पहचान उसकी कविता है। मेरी कविताओं को एक बुज़ुर्ग शायर ने सुना। सुनकर वह बहुत प्रभावित हुए और सलाह दी कि मैं अपने संस्कृत बहुल शब्दों पर उर्दू की चाशनी चढ़ाऊँ। यह मुझे बहुत दूर तक ले जाएगी। काफी उधेड़-बुन के बाद मुझे अहसास हुआ कि बुज़ुर्ग का कहना बिल्कुल सही था।
मुश्किल में जो काम आता है उससे दिल का रिश्ता जुड़ जाता है। दरअस्ल, ये रिश्ते इंसानी ज़िंदगी में वह सीढ़ी हैं जिनके सहारे इंसान किसी भी ऊँचाई को छू सकता है।यह रिश्ता ही ख्वाबों को जन्म देता है, उनमें उड़ान भरता है, यह इंसान को कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है। इंसान इसी की बदौलत देवत्व को भी हासिल करता है। रिश्ते हैं तो सबकुछ है वरना कुछ भी नहीं है।
लिंबू मिरची किताब विवेक अग्रवाल की लेखकीय दृष्टि का अलग पहलू पेश कर रही है।
उनका पहला लघुकथा संग्रह लिंबू मिरची है। यह किताब न जाने कितने विषयों और किरदारों के साथ हाजिरी लगाती है। विवेक अग्रवाल ने इन लघु कथाओं में न केवल विषयों का विस्तार तथा विविधता बनाए रखे हैं बल्कि किरदारों का अनूठा संसार भी गढ़ा है। वे कहानियां लिखते हुए सामाजिक बुराईयों पर गहरा प्रहार करते हैं। कुछ ऐसे बिंदु भी उठा लाए हैं, जो समाज को नई दशा और दिशा देते हैं।
इन कहानियों में समय साथ-साथ चलता है। समाज से उठाए विषय पर लघु कथाएं लिंबू मिरची में हैं। ये छोटी कहानियां मन में टीस भरती हैं। आंखों के कोर गिले करती हैं। कसमसाती हैं। दुखी करती हैं। कभी गुदगुदाती, हंसाती भी हैं। हर कहानी का अपना व्यक्तित्व है क्योंकि हर लघुकथा अलग विषय, स्थान, वक्त, भाव, पात्र धारण करती है।
भारतीय मान्यता है कि ब्रम्हा ने ऋग्वेद से शब्द, सामवेद से गीत-संगीत, यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस लेकर नाट्यवेद की रचना की। यह नाटक दैनिक जीवन में मनुष्य के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। जब तक मानव के पास मन है, आघात-प्रत्याघात का स्पंदन है तबतक मनुष्य के अंदर-बाहर नाटक चलता रहता है। सुख-दुःख, हास्य-रुदन, मिलन-विरह, प्रेम-घृणा, समर्पण ईर्ष्या, दोस्ती-दुश्मनी, आदि अपने-अपने रंग-रूप दर्शाते रहते हैं।
नाटक चाहे अभिजात्य वर्ग के लिए हो या जनसाधारण के लिए लोकनाटक, सबका उद्देश्य होता है मनुष्य के विभिन्न मनोभावों को उकेरना। नाटकीय ढंग से उकेरे गए इन मनोभावों का असर दर्शकों पर कमाल का होता है। दर्शक इसी कमाल के चलते नटों (कलाकारों) के फैन बन जाते हैं।
माफिया सिरीज की सातवीं किताब, जिसमें अंडरवर्ल्ड और देश के तमाम रेसकोर्स में सबसे बड़े और विख्यात महालक्ष्मी रेसकोर्स की जमीन पर नियंत्रण, हजारों करोड़ के जुए-सट्टे पर कब्जे लेकर मचे घमासान और अंदरूनी रहस्यों का पर्दाफाश है। राजनेता, उद्योगपति, बिल्डर, फिल्मी हस्तियां, गिरोह सरगना के झगडे में फंसते हैं गरीब और ऐसे लोग, जिनका इस दुनिया से कोई वास्ता नहीं। उपन्यास का नायक जॉकी पीसी सेठ क्या-क्या गुल खिला सकता है, उसके अंतस में झांकने की कोशिश है। रेसकोर्स की अंदरूनी राजनीति और क्लब पर नियंत्रण के होने वाली राजनीति, उसमें बने मोहरों के टकराव की खतरनाक अंदरूनी जानकारियों और सच्चे किस्सों-किरदारों से सजी किताब का नाम है - रेसर। ये तमाम नग्न सत्य का प्रकटन करता, सच्चे किरदारों से सजा विवेक अग्रवाल का उपन्यास रेसर आपको हर पल चौंकाएगा।
महात्मा गांधी की 150 वीं जयंति वर्ष में उनके बचपन पर लिखा शकील अख़्तर का यह बहुप्रशंसित नाटक है।
शोध आधारित इस नाटक में महात्मा गांधी के 7 साल की उम्र से 18 साल की उम्र तक यानी 1876 से 1887 के बीच गुज़रे अहम प्रसंग हैं।
नाटक के पहले दो शोज़ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली (भारत) में हुए हैं। सीनियर थिएटर डायरेक्टर हफीज़ ख़ान के निर्देशन में इन शोज़ में 23 बाल कलाकारों ने काम किया था।
एनएसडी के रजिस्ट्रार पीके मोहंती के शब्दों में, बच्चों के लिये यह प्रेरक और शिक्षाप्रद नाटक है।
हफीज़ ख़ान कहते हैं, ‘नाटक में महात्मा गांधी के बाल जीवन के वो अहम प्रसंग हैं जिन्होंने उन्हें ‘मोनिया दि ग्रेट’ बनाया।
कमाठीपुरा किताब की तमाम कहानियां लेखक ने अपनी पत्रकारिता के दिनों में देखीं, भोगीं और जी हैं। कमाठीपुरा से लेखक ने पत्रिकारिता के दिनों में मुंबई अंडरवर्ल्ड, पुलिस तथा खुफिया विभागों की खूब खबरें हासिल कीं। इसी दौरान लेखक ने यहां मानव तस्करी से बचाव के कई सफल अभियानों में हिस्सा भी लिया।
इस किताब की कहानियां हजारों वेश्याओं और तवायफों के बीच से निकली हैं। समाज की आखिरी पांत में खड़ी इन औरतों-लड़कियों के मैले-कुचैले, बदबूदार, हवा-रोशनी से महरूम कमरों और गलियारों के बीच चंद पल जीते हुए, उनके दुख की गलियों से गुजरते हुए, न जाने कितने किस्से लेखक के दिलो-दिमाग पर छपते रहे। अब किताब के जरिए ये कहानियां साझा की हैं।
A book based on social evils and crime and the world of infamous dance bar of Mumbai and Maharashtra. This is a research based book about dance bars, it’s effects – impacts of society, economy, country. How the government of Maharashtra banned the dance bars in Maharashtra despite Supreme Court judgements. Author of Bar Bandi focus on social and financial crisis of bargirls and stigma they faced.
मुंबई के डांस बारों पर पाबंदी लगने के पहले और बाद के हालात पर विहंगम दृष्टिपात करती एक किताब लिखने का इरादा था। जब काम शुरू हुआ तो मुंबई के डांस बारों की 12 आंसू बहाती बुलबुलों की दास्तां ‘बांबे बार’ में समेटीं, जिसे पाठकों ने खूब सराहा।
डांस बारों का लेखा-जोखा, उसके इतिहास से वर्तमान तक हर पहलू पर नजर डालने के उपक्रम में मेरी भी बार-बंदी किताब तैयार हो गई।
रजत कपूर अंडरवर्ल्ड का फाइनेंसर है। रजत डॉन दानिश को फाईनेंस करता है लेकिन अपने साधनों-संसाधनों का दोहन उतना ही करने देता है, जिससे किसी अवैध गतिविधि में सीधे उसका नाम न जुड़े।
रजत कपूर देश का सबसे बड़ा हीरा उद्योगपति है। विश्व के ब्लड डायमंड के सबसे बड़े खिलाड़ियों में शूमार है। सोने-चांदी की तस्करी में भी उसका हाथ है। अपनी चमकती-दमकती दुनिया बनाए व बचाए रखने के लिए उसने मायाजाल और इंद्रजाल बना रखा है।
वह माफिया की मदद से कारोबार करता है, भ्रष्ट अफसरों-नेताओं के जरिए सिस्टम में पैठ बना कर काले को सफेद में तब्दील करता है। दुनिया के हर भ्रष्ट देश में रजत की जड़ें हैं। काम निकालने और लाभ बढ़ाने के लिए ड्रग्स और स्मॉल आर्म्स तस्करी से भी परहेज नहीं रखता।
कैसे चलता है फाईनेंसरों का खेल और अंडरवर्ल्ड का खूनी संसार, इस किताब में बेपर्दा होकर सामने आता है।
एक आपराधिक घटना से चकरघिन्नी की कहानी बनी है। यह कहानी मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़ी है।
मुंबई के गिरोह ने कारोबारियों और उद्योगपतियों को धमकाना शुरू किया कि तुमने सरकारी टैक्स भर दिया, चलो हमारा टैक्स भरो। दाऊद गिरोह ने काला धन घोषित करने वाले तमाम लोगों से 10 फीसदी रकम की वसूली की।
फिल्म का कथानक व पटकथा का साहित्य रूप में आकार लेना अब नई बात नहीं रही क्योंकि विवेक अग्रवाल लिखित फिल्म 'अदृश्य' पहले प्रदर्शित हुई, उसके बाद बशक्ल उपन्यास आ गई। ऐसा ही चकरघिन्नी के साथ हो रहा है। यह पटकथा रूप में पहले लिख ली, अब उपन्यास में तब्दील हुई है।
यह साहित्य नहीं, महज मनोरंजन का मसाला है। इसमें जो साहित्यिक समाधान चाहते हैं, उन्हें निराशा होगी। इसमें जिन्हें तथ्य व लॉजिक चाहिएं, उन्हें भी कुछ खास नहीं लगेगा। इसके बावजूद यह पठनीय जनप्रिय लेखन है।
E BOOK-Jai Hind Subhash @ 149.00
जयहिंद सुभाष
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित नाटक है ‘जयहिंद सुभाष’। नाटक में बालक, किशोर, युवा और प्रौढ़ सुभाष चन्द्र बोस के भारत की स्वाधीनता के संघर्ष की प्रमुख घटनाओं का चित्रण किया गया है।
यह ऐतिहासिक नाटक सत्य घटनाओं पर आधारित है। नाटक के गीत-संगीत में, आजाद हिन्द फौज के मूल गीतों का भी उपयोग किया गया है।
क्रांतिकारियों के जीवन पर 35 पुस्तकों का लेखन करने वाले श्री सत्यनारायण शर्मा और सुभाष चंद्र बोस से जुड़े साहित्य के अध्धयनकर्तातपन मुखर्जी ने इस नाटक की प्रशंसा है। इसे आज़ादी के अमृत महोत्सव के समय में लिखी गई एक उपयोगी नाट्य कृति बताया है।
जाने-पहचाने लेखक और पत्रकार शकील अख़्तर ने इस नाटक का लेखन किया है
ये छोटे-छोटे व्यंग्य यक्ष-युधिष्ठिर संवाद रूप में जब सामने आते हैं, तो हर उस बात पर व्यंग्य करते चलते हैं, जो लेखक समाज में देखता है। एक - दो पन्नों के लेख में रचना तत्व तो व्यंग्य विधान का है लेकिन प्राचीन आख्यानक के जरिए प्राचीन और अर्वाचीन की तुलना करते जाने से अधिक पैनापन आया है। वक्त की सलीब पर लटके यक्ष और युधिष्ठिर जैसे पात्र जब प्रश्न एवं उत्तर उपस्थित करते हैं, तो उनमें यथार्थ के अनगिन शूल मन में धंसते जाते हैं। ये व्यंग्य रिपोर्ताज श्रेणी का लेखन है, जो इन दिनों कम ही देखने में आता है। विवेक अग्रवाल चूंकि एक पत्रकार हैं, वे सामाजिक-राष्ट्रीय विषयों पर पैनी निगाह रखते हैं, जिसके चलते इन पर तंज करने से भी नहीं चूकते हैं।
E BOOK-CORONA UNCOS
Corona Uncos is a collection of stories that are very heart warming or terribly heart wrenching. While some stories might shatter your faith in humanity, some of them will not fail to bring a smile on your face.
This book is completely dedicated to the known and unknown Corona Warriors. 150 such stories have been written and compiled by Tanisha Agrawal.