भारतीय मान्यता है कि ब्रम्हा ने ऋग्वेद से शब्द, सामवेद से गीत-संगीत, यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस लेकर नाट्यवेद की रचना की। यह नाटक दैनिक जीवन में मनुष्य के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। जब तक मानव के पास मन है, आघात-प्रत्याघात का स्पंदन है तबतक मनुष्य के अंदर-बाहर नाटक चलता रहता है। सुख-दुःख, हास्य-रुदन, मिलन-विरह, प्रेम-घृणा, समर्पण ईर्ष्या, दोस्ती-दुश्मनी, आदि अपने-अपने रंग-रूप दर्शाते रहते हैं।
नाटक चाहे अभिजात्य वर्ग के लिए हो या जनसाधारण के लिए लोकनाटक, सबका उद्देश्य होता है मनुष्य के विभिन्न मनोभावों को उकेरना। नाटकीय ढंग से उकेरे गए इन मनोभावों का असर दर्शकों पर कमाल का होता है। दर्शक इसी कमाल के चलते नटों (कलाकारों) के फैन बन जाते हैं।
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₹299.00